52 शहीदों की कुर्बानी की दास्तां, जब 37 दिनों तक इमली के पेड़ पर लटकते रहे क्रांतिकारियों के शव, जोधा सिंह अटैया समेत

52 शहीदों की कुर्बानी की दास्तां, जब 37 दिनों तक इमली के पेड़ पर लटकते रहे क्रांतिकारियों के शव, जोधा सिंह अटैया समेत 

जोधा सिंह अटैया (1820 - 28 अप्रैल 1858) 1857 की क्रांति के दौरान एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी थे, जो उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के रसूलपुर (रसूलपुर अटैया) गांव के एक ज़मींदार थेउन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध का आयोजन किया और ने उनकी भूमिका के बारे में विस्तार से बताया. 

जोधा सिंह अटैया का जन्म 1820 के दशक में हुआ था, और वे रसूलपुर गांव में रहते थे. 1857 के विद्रोह के दौरान, उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह में भाग लिया और एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 

जोधा सिंह अटैया ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 28 अप्रैल 1858 को उन्हें अंग्रेजों द्वारा फांसी पर चढ़ा दिया गयाउनकी मृत्यु के बाद, उन्हें एक शहीद के रूप में याद किया गया. 

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के महान स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह ‘अटैया’ के साथ उनके जांबाज़ 51 साथियों ने देश के लिए प्राणों की आहुति दे दी। 28 अप्रैल 1858 को कर्नल क्रस्टाइज की सेना ने ठाकुर जोधा सिंह समेत उनके 52 क्रांतिकारियों को बंदी बना लिया था। साथ ही उसी दिन इन सभी वीर सपूतों को जिला स्थित खजुहा में एक इमली के पेड़ पर फांसी से लटका दिया था। यह पेड़ अब ‘बावनी इमली’ के नाम से प्रसिद्ध है।


फतेहपुर: आज आजाद देश के रूप में हमारी पहचान है। इस पहचान को हासिल करने में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को करीब 200 साल ब्रिटिश हुकूमत से जंग करनी पड़ी थी। इस लंबे संघर्ष के बीच हमारे देश की मिट्टी ने कई नायक पैदा किए। इन्होंने देश के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान कर दिया। इन्ही महान क्रांतिकारियों में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह ‘अटैया’ और उनके 51 साथियों के नाम भी शामिल हैं।

बावनी इमली के नाम से प्रसिद्ध है पेड़
उस दौर की बात की जाए तो 28 अप्रैल, 1858 को ब्रिटिश शासक कर्नल क्रस्टाइज की घुड़सवार सेना ने जोधा सिंह समेत उनके 52 जांबाज़ क्रांतिकारियों को बंदी बना लिया था। साथ ही, उसी दिन इन सभी को फतेहपुर जिला स्थित खजुहा में एक इमली के पेड़ पर फांसी से लटका दिया था। तभी से यह पेड़ अब ‘बावनी इमली’ के नाम से प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों की मानें तो जब इन सभी को फांसी दी गई थी, उस समय से ही इस पेड़ का विकास थम सा गया है।
अंग्रेज अफसर ने खौफ के लिए दी थी चेतावनी 

बताया जाता है कि अंग्रेजों ने लोगों में खौफ पैदा करने के लिए सभी शवों को पेड़ से उतारने को मना कर दिया था।साथ ही, हिदायत दी थी कि अगर ऐसा करने की किसी ने हिम्मत की तो उसका भी यही हश्र होगा। जिसकी वजह से इन सभी क्रांतिकारियों के शव 37 दिनों तक पेड़ में ही लटके रहे। इस दौरान शवों के केवल कंकाल ही बचे थे।

3-4 जून की रात ठा. महाराज सिंह ने उतारा था शव
बावनी इमली के पास दर्ज ऐतिहासिक दस्तावेज की मानें तो अमर शहीद ठा. जोधा सिंह के साथी ठाकुर महाराज सिंह ने अपने 900 क्रांतिकारी साथियों के साथ 3-4 जून 1858 की रात सभी कंकाल को पेड़ से उतारकर गंगा नदी किनारे स्थित शिवराजपुर घाट पर अंतिम संस्कार किया था।

कर्नल पावेल की कर दी थी हत्या
ठाकुर जोधा सिंह राजपूत जाति से थे। वह फतेहपुर जिले के अटैया रसूलपुर गांव के रहने वाले थे। ठा. जोधा सिंह अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। युद्ध मे अंग्रेजों को मात देने के लिए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध को अपना हथियार बनाया था। इस जंग के दौरान जोधा सिंह और उनके जांबाज़ साथियों ने मिलकर अंग्रेज अफसर कर्नल पावेल की हत्या कर दी थी। वहीं, 7 दिसंबर को रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला भी किया था। इसके दो ही दिन बाद यानी 9 दिसंबर, 1857 को जहानाबाद (तत्कालीन तहसील) के तहसीलदार को बंदी बनाकर सरकारी खजाना लूट लिया था।

मुखबिर की सूचना पर कर्नल क्रिस्टाईल ने किया था गिरफ्तार
इन सारी घटनाओं से परेशान फिरंगियों ने जोधा सिंह को डकैत घोषित कर दिया और उन्हें गिरफ्तार करने के लिए मुहिम तेज़ कर दी। लेकिन जोधा सिंह कई बार अंग्रेजों को चकमा देने में सफल रहे। 28 अप्रैल, 1858 को अपने 51 साथियों के साथ खजुहा वापस लौट रहे थे। तभी एक मुखबिर की सूचना पर अंग्रेज अफसर कर्नल क्रिस्टाइल ने सभी को एक साथ बंदी बना लिया और उसी दिन जोधा सिंह के साथ उनके सभी 51 क्रन्तिकारियों को एक साथ फांसी पर लटका दिया गया।

 

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