दान या उपहार में मिली जमीन पर बाजार दर से स्टैंप शुल्क वसूली गलत --- इलाहाबाद हाई कोर्ट

दान या उपहार में मिली जमीन पर बाजार दर से स्टैंप शुल्क वसूली गलत --- इलाहाबाद हाई कोर्ट

 

दान या उपहार में मिली जमीन पर बाजार दर से स्टैंप शुल्क वसूली गलत

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि दान में मिली भूमि का स्टैंप शुल्क बाजार दर से नहीं लिया जा सकता। कोर्ट ने अर्ध न्यायिक कार्य करने वाले अधिकारियों को विशेष सतर्कता बरतने की नसीहत देते हुए बाजार दर से स्टैंप क्सूली आदेश रद कर दिया। साथ ही वसूली गई अधिक राशि वापस करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति शेखर बी. सर्राफ ने झांसी के शील मोहन बंसल की याचिका को स्वीकार आदेश दिया है। करते हुए कोर्ट ने कहा कि विधायिका ने बाजार मूल्य और संपत्ति का मूल्य दोनों को अलग-अलग तरीके स्पष्ट किया है। उपहार या दान में पर संपत्ति के मूल्य से स्टैंप दी भूमि शुल्क लगाया जा सकता है। याची ने दान में एक भूमि हासिल की थी। स्टैंप अधिनियम की धारा भारतीय 47-ए के तहत कार्रवाई करते हुए अतिरिक्त स्टैंप शुल्क वसूली का आदेश 18 नवंबर 2022 को पारित किया। अपील भी खारिज कर दी तो हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कहा कि वसूली आदेश का कोई कानूनी आधार नहीं है, क्योंकि स्टैंप अधिनियम के तहत अधिकारियों को स्टैंप शुल्क के पुनर्मूल्यांकन का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि उपहार रजिस्ट्री में संपत्ति के मूल्य के बराबर स्टैंप शुल्क लिया जाना चाहिए। सरकार की ओर से कहा कि गिफ्ट की गई भूमि में पहले से पेट्रोल पंप है। इसके अलावा दो सौ मीटर के भीतर व्यावसायिक गतिविधियां चल रही हैं। इसलिए बाजार मूल्य के आधार पर स्टैंप शुल्क वसूल किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि संपत्ति की बिक्री में आम तौर पर दो पक्ष विक्रेता और क्रेता शामिल होते हैं। गिफ्ट विलेख में केवल उपहार लेने वाला ही प्रासंगिक होता है। यह उस पर निर्भर करता है कि वह अपनी संपत्ति को कितना महत्व देता है।

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